शनिवार, 12 नवंबर 2011

लघु कथा

1- कॉलोनी में शुद्ध देसी घी बेचने वाला आया,अपनी समझ और परख के अनुसार
घी की शुद्धता के प्रति आश्वस्त होकर उन्होंने भी ले लियाअफ़सोस 4 दिन बाद
घी ने अपनी असलियत उगल दी उन्होंने ऑफिस में बताया ' ईमानदारी का
जमाना ही नहीं है,क्या करें हमने वो घी रसोई से हटाकर पूजा-पाठ में प्रयुक्त
करना शुरू कर दिया है'
2-उन्होंने सब्जियां खरीदी,सब्जी वाली ने 1 नोट फटा हुआ कह कर 
लौटा दिया।पहले भी उस नोट को 'होशियारी पूर्वक' चलाये जाने का 
विफल प्रयास हो चुका था।हार मानकर उन्होंने वो नोट जेब में डाला 
और कहने लगे 'कोई बात नहीं यह नोट मंदिर में चडावे के काम आ 
जायेगा'
             मेरे मन में सैकड़ों विचार कुलबुलाने लगे.......                      

9 टिप्‍पणियां:

  1. बहुत ही बेहतरीन रचना....

    मेरे ब्लॉग
    पर आपका हार्दिक स्वागत है।

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  2. बहुत सुंदर और सहज अभिव्यक्ति ,हमारी मानसिकता भी कैसी है जब मांगना हो तो मुह खोल कर और हाथ फैलाकर मांगते है और जब देने की बात आती है तो पूरे के पूरे सिकुड़ जाते है

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  3. मज़ेदार है पर सत्य है, आजकल यही हो रहा :)

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  4. इस टिप्पणी को एक ब्लॉग व्यवस्थापक द्वारा हटा दिया गया है.

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