रविवार, 26 जून 2011

जनता दरबार या लोक मिलन?

समाचार पत्रों तथा टी वी  चेनलों से अक्सर उच्च संवेधानिक पदों पर
आसीन व्यक्तियोंके "जनता दरबार" सम्बन्धी समाचारज्ञात 
होतें हैं|कुछ संदेह सा होता है की हमारी शासन व्यवस्था लोकतान्त्रिक है
या राजशाही?क्या इस प्रकार के अभिजात्य दंभ पूर्ण विशेषण"लोकतंत्र" को
 "छदमवेश में कुलीन तंत्र" घोषित करते हुए प्रतीत नहीं होते?   
हमारे प्रतिनिधियों  को "राजा" तथा आम जन को 
"दरबारी" कहा/माने जाना कहाँ तक उचित है?
विचार मंथन हेतु आपकी प्रतिकियाओं का स्वागत है|