किशोर अवस्था में कहीं एक कविता पढ़ी थी जो प्रेम को परिभाषित करती है और मेरे मन के बहुत करीब है,
मुस्कराहटों के मेले में
खिलखिलाती हुई
जब तुम मिली मुझे पहली बार
तब उसी पल से लगा
जीवन का सच तुम ही हो
तुम्हारे अधरों से निकली हंसी
बरबस मुझे भी कुछ ख़ुशी दे गई
ओर में समझ गया