रविवार, 22 फ़रवरी 2009

Crisis of news

These days print and electronic media are suffering with crisis of news.U Can see d degradation of news headlines & content everywhere.I think, it is happening due to lack of sensitivity in present journalism.Like other professionals a journalist,also want to earn name & fame at earliest way.Thus he forget his social responsibility.Cut throat race of T.R.P. & circulation is making d scenerio worst.News channel r showing JADU-TONA in prime time,while news papers r discussing on Aishwarya'S marriege.Should it b our matter of concern? Level of local journalism is pity also.V need to think about it seriously.It;s our moral duty to make an environment against such kind of news making.News with proper concern on grass root problems can become a RAMBAAN for for upliftment of deprived class of our society.

सोमवार, 9 फ़रवरी 2009

शेयर बाज़ार पर एक सोच

कुछ समय पहले एक मशहूर प्रबंधन गुरु के शेयर बाज़ार के बारे मैं नकारात्मक विचार पड़े,जिससे मैं नितांत असहमत हूँ.मैं नही मानता की शेयर मैं निवेश एक जुआ है,यह एक समजधारी पूर्ण निर्णय भी हो सकताहै  यदि हम निम्न आधारभूत नियमो पर चले-
.अपनी जोखिम उठाने की क्षमता का सही आकलन करें
.अपनी बचत का २५% से अधिक शेयर में न लगाये।
.शुरुआती दौर में केवल अच्छे प्रतिफल वाली म्यूचुअल फंड्स  योजनाओ में ही निवेश करे।
.SIP के जरिये निवेश करे।
.मजबूत आधार वाली,पारदर्शी प्रभनधन तथा साख युक्त कंपनी में निवेश करे
.टिप्स सुने जरुर पर बुदि व स्व-विवेक से निर्णय लें।
.रातों रात बिना  किसी  ठोस  आधार  के  लम्बी  उछाल लेने  वाले
 शेयर से  सावधान  रहें   
डिस्क्लैमेर:- यह ब्लॉग केवल शेक्षिक उद्देश्य से लिखा गया है,इसका अर्थ  यह कदापि नही है की आप शेयर बाज़ार में  अवश्य  प्रवेश करें। ब्लॉग में प्रकाशित विचार  ब्लॉग  लेखक  के निजी हैं, तथा यह ब्लॉग पूर्ण नही है.इसलिए शेयर बाज़ार मैं होने वाले लाभ या हानि का स्वयं आकलन कर उचित निर्णय लें.उपरोक्त प्रकाशित सामग्री पर ब्लॉग लेखक की कोई जवाबदेही स्वीकार नहीं  की जायेगी.

गुरुवार, 5 फ़रवरी 2009

वो रात

डॉ.हरिवंश राय  बच्चन की एक कविता जो मुझे बेहद पसंद है,इस प्रकार है-
                रात आधी खींच कर मेरी हथेली,
                एक ऊँगली से लिखा था प्यार तुमने
                एक बिजली सी  छू गयी  सहसा जगा मैं,
                कृशन पक्षी  चाँद निकला था गगन में,
                इस तरह करवट पड़ी थी की तुम की
                आंसू  बह रहे थे इस नयन से उस नयन में
                मैं लगा दूँ आग इस संसार मैं,
                है प्यार जिसमें इस तरह असमर्थ कातर
                जानती हो उस समय क्या कर गुजरने के लिए
                कर दिया तैयार तुमने,
                  फ़िर न आया वक्त वैसा,
                फ़िर न मौका उस तरह का
                फ़िर न लौटा चाँद निर्मम,
                और  हवा का झोंका उस तरह का
                बुझ नही पाया अभी तक,उस समय जो
                रख दिया था हाथ पर अंगार तुमने,
                रात आधी खिंच कर मेरी हथेली,
                एक ऊँगली से लिखा था प्यार तुमने......

बुधवार, 4 फ़रवरी 2009

परिभाषा

किशोर अवस्था में कहीं एक कविता पढ़ी  थी जो प्रेम को परिभाषित करती है और  मेरे मन के बहुत करीब है,
मुस्कराहटों  के  मेले  में
खिलखिलाती हुई
जब तुम मिली मुझे पहली बार
तब उसी पल  से लगा
जीवन का सच तुम ही हो
तुम्हारे अधरों से निकली हंसी
बरबस मुझे भी कुछ ख़ुशी दे गई
ओर में समझ गया
"प्रेम" क्या होता  है.