बुधवार, 4 फ़रवरी 2009

परिभाषा

किशोर अवस्था में कहीं एक कविता पढ़ी  थी जो प्रेम को परिभाषित करती है और  मेरे मन के बहुत करीब है,
मुस्कराहटों  के  मेले  में
खिलखिलाती हुई
जब तुम मिली मुझे पहली बार
तब उसी पल  से लगा
जीवन का सच तुम ही हो
तुम्हारे अधरों से निकली हंसी
बरबस मुझे भी कुछ ख़ुशी दे गई
ओर में समझ गया
"प्रेम" क्या होता  है.

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें